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पर्यावरण संरक्षण पर निबंध।
पर्यावरण संरक्षण पर निबंध। : जैसा कि हम सब जानते है कि प्राकृतिक संसाधन के अंतर्गत आने वाली संसाधन के अंतर्गत आने वाली संसाधन वन, जल खनिज एवं उर्जा किसी भी राष्ट्र के विकास में महत्वपूर्ण योगदान करते है। इन संपदाओं के अधिशोषण ने प्राकृति संसाधनों की क्षीण कर दिया है तथा कई समस्याअें को जन्म दिया है। जिससे इसके संरक्षण एवं संवर्धन की आवश्यकता बढ़ गई है।
इस धरती पर रहने वाले समस्त प्राणियों के जीवन तथा समस्त प्राकृतिक परिवेश से पर्यावरण संरक्षण का घनिष्ठ समबंध है हम सबकों पता है कि प्रदूषण के कारण सारी पृथ्वी दूषिात हो रही है। और इसी कारण निकट भविष्य में मानव सम्पदा का अंत दिखाई दे रहा है। इस स्थिती को ध्यान में रखकर एवं 1992 में ब्राजील में विश्व के 174 देशों का पृथ्वी सम्मेलन आयोजित किया गया था इसके पश्चात सन् 2002 में दक्षिण अफ्रिका के जोहान्सबर्ग में पृथ्वी सम्मेलन का आयोजन हुअ और विश्व के सभी देशों की पर्यावरण संरक्षण पर ध्यान देने के लिए उनके 3 उपाए सुझाए गये।
आज सभी को यह जानने की आवश्यकता है कि पर्यावरण के संरक्षण से ही धरती पर जीवों का संरक्षण हो सकता है।
पर्यावरण संरक्षण का अर्थ:-
पर्यावरण संरक्षण अर्थ है पर्यावरण को किसी भी तरह के दुष्प्रभाव से बचाना। पर्यावरण के किसी भी एक अंग की क्षति पर्यावरण संतुलन पर अपना प्रभाव डालती है। प्रकृति में रहने वाले छोटे छोटे जीव जन्तु भी सुरम्य पर्यावरण का संतुलन बनाने रखने में अपना योगदान देते हैं। अतः मानव समाज के लिए आवश्यक हेा जाता है कि पर्यावरण संतुलन के प्रति अपनी जागरूकता रखे और उसको बचाने का भरसक प्रयास करे।
पर्यावरण संरक्षण के निम्लिखित मुख्य प्रकार हैः
1 जल संरक्षण
- भूमिगत जल का विवेकपूर्ण उपयोग कर जल संरक्षण किया जा सकता है।
- वर्षा जल को एकत्रित करके भी भूमिगत जल का संरक्षण किया जा सकता है।
- वनस्पति विनाश पर नियंत्रण कर जल संरक्षण को उपयोगी बनाया जा सकता है।
- प्राकृतिक वनस्पति जलीय चक्र को संपादित करने में सहायक होती है।
- पुनर्चक्रण द्वारा घरेलू जल की बर्बादी को कम किया जा सकता है।
- शुष्क एवं अर्द्धशुष्क प्रदेशों में जल की आपूर्ति का महत्वपूर्ण स्त्रोत भूमिगत जल होता है, जिसका संरक्षण आवश्यक है।
- प्राकृतिक वनस्पति जलीय चक्र को संपादित करने में सहायक होती है।
- अपशिष्ट जल का शोधन कर उसे पुनः उपयोगी बनाकर जल की कमी को पूरा किया जा सकता है।
2 मृदा संरक्षण
मृदा पृथ्वी की उपरी परत को कहते हैं, जिसका निर्माण जलवायु, जीव तथा भौतिक कारकों की पारस्परिक क्रियाओं के परिणाम स्वरूप होता है।
दीर्घकालीन क्रियाओं के फलस्वरूप मृदा की परतें बनती है।
यांत्रिक विधियों तथा शस्य कृषि अपनाकर मृदा संरक्षण किया जा सकता है ।
3 वन संरक्षण
वनों की कटाई नियोजित एवं विवेकपूर्ण ढंग से तथा वृक्षों का पुनःरोपण कर वन संरक्षण को बढ़ावा दिया जा सकता है।
वन्य संसाधनों का दोहन धारणीय तथा पोषणीय सीमा तक कर वन संरक्षण का विकास किया जा सकता है।
पर्यावरण संबंधी विश्वव्यापी कानून द्वारा भी वनों के संरक्षण पर ध्यान दिया जा सकता है।
4 वन्यजीव संरक्षण
- वन्यजीव तथा पक्षियों के महत्व को देखते हुए सर्वप्रथम 1887 ई में वन्य पक्षियों के सुरक्षा कानून को पास किया गया।
- इसके बाद 1883 ई में स्थापित ‘बम्बई नेचुरल हिस्ट्री सोसायटी’
- वन्यजीवी तथा पक्षियों के महत्व को देखते हुए सर्वप्रथम 1887 ई में वन्य पक्षियों के सुरक्षा कानून को पास किया गया।
- इसके बाद 1883 ई में स्थापित ‘बम्बई नेचुरल हिस्ट्री सोसायटी’ के प्रयास से ‘इंडियन बोर्ड आॅफ वाइल्ड लाइफ’ की स्थापना की गई।
- 1935 ई में ‘अखिल भारतीय वन्य जीव सुरक्षा सभा’ को स्थापित कर वन्य जीवों की सुरक्षा की विशेष नीति अपनाई गई।
- सर्वप्रथम 1952 ई में ‘भारतीय वन्य जीव परिषद’ की स्थापना में जीवों के अध्ययन के आधार पर 13 जीवों को दुर्लभ घोषित किया गया।
- 1972 ई में पारित ‘वन्य जीव रक्षा अधिनियम’ द्वारा वन्य जीवों के शिकार एवं व्यापार पर भारत सरकार द्वारा कठोर प्रतिबंध लगाया गया है।
5 जैव-विविधता संरक्षण
- जैव विविधता से आशय किसी भी क्षेत्र में, देश में, महाद्वीपों में अथवा विश्व स्तर पर पाए जने वाले जीव धारियों (जीव और पौधे) की जैविकीय रचना में विविधता से है।
- जैव-विविधता की दृष्टि से भारत विश्व के 10 सबसे बड़े समृद्ध राष्ट्रों में से एक है।
जैव-विविधता अधिनियम, 2002 की स्थापना का प्रमुख उद्देश्य जैव-विविधता का विकास करना है।
पर्यावरण संरक्षण की विधियां
जल पर्यावरण संरक्षण
अपने पर्यावरण को बेहतर बनाने के लिए हमें सबसे पहले अपनी मुख्य जरूरत ‘जल’ को प्रदूषण से बचाना होगा। कारखानों का गंदा पानी, घरेलू गंदा पानी, नालियों में प्रवाहित मल, सीवर लाइन का गंदा निष्कासित पानी को समीपस्थ नदियों और समुद्र में गिरने से रोकना होगा। कारखानों के पानी में हानिकारक रासायनिक तत्व घुल रहते हैं जो नदियों के जल को विषाक्त कर देते हैं, परिणामस्वरूप जलचरों के जीवन को संकट का सामना करना पड़ता है। दूसरी ओर हम देखते है। कि उसी प्रदूषित पानी को किसान सिंचाई के काम में लेते है। जिसमें उपजाऊ भूमि भी विषैली हो जाती है। उसमें उगने वाली फसल व सब्जियां भी कहीं महत्वपूर्ण है उनका स्वास्थ्य, जो हमारा भविष्य व उनकी पूंजी है।
वायु प्रदूषण संरक्षण
आज वायु प्रदुषण ने भी हमारे पर्यावरण को बहुत हानि पहुंचाई है। जल प्रदूषण के साथ ही वायु प्रदूषण भी मानव के सम्मुख एक चुनोती है। माना कि आज मानव विकास के मार्ग पर अग्रसर है परंतु वहीं बड़े बड़े कल-कारखानों की चिमनियों से लगातार उठने वाला धुंआ, रेल व नाना प्रकार के डीजल व पेट्रोल से चलने वाले वाहनों के पाइपों से और इंजनों से निकलने वाली गैसें तथा धुआं, जलाने वाला हाइकोक, ए.सी., इनवर्टर, जेनेटर आदि से कार्बन डाइआॅक्साइड, नाइट्रोजन, सल्फ्युरिक एसिड, नाइट्रिक एसिड प्रति क्षण वायुमंडल में घुलते रहते है। वस्तुतः वायु प्रदूषण सर्वव्यापक हो चुका है। सही मायनों में पर्यावरण पर हमारा भविष्य आधारित है, इसके लिए हमें वायु प्रदूषण से पर्यावरण को बचाना बहुत आवश्यक है।
ध्वनि पर्यावरण संरक्षण
आज पर्यावरण के लिए ध्वनि प्रदूषण भी एक बहुत बड़ी समस्या के रूप में उभरा है। अब हाल यह है कि महानगरों में ही नहीं बल्कि गांवों तक में लोग ध्वनि विस्तारकों का प्रयोग करने लगे है।। बच्चे के जन्म की खुशी, जन्मदिन पार्टी, शादी पार्टी सभी में डी.जे. एक आवश्यकता समझी जोने लगी है। जहां गांवों को विकसित करके नगरों से जोड़ा गया है। वहीं मोटर साइकिल व वाहनों की चिल्ल पों महानगरों के शोर केा भी मुंह चिढ़ाती नजर आती है। औद्योगिक संस्थानों की मशीनों के कोलाहल ने भी ध्वनि प्रदूषण को बढ़ाया है। ध्वनि प्रदूषण से मानव की श्रवण शक्ति का हृास होता है। ध्वनि प्रदूषण का मस्तिष्क पर भी घातक प्रभाव पड़ता है।
जल प्रदूषण, वायु प्रदूषण और ध्वनि प्रदूषण ये तीनों ही हमारे व हमारे फूल जैसे बच्चों के स्वास्थ्य केा चैपट कर रहे हैं। ऋतुचक्र का परिवर्तन, कार्बन डाईआॅक्साइड की मात्रा का बढ़ता जाना हिमखंड को पिघला रहा है। सुनामी, बाढ., सूखा,
अतिवृष्टि या अनावृष्टि जैसे दुष्परिणाम सामने आ रहे हैं, जिन्हें देखते हुए अपने बेहतर कल के लिए ‘5 जून’ को समस्त विश्व में ‘पर्यावरण दिवस’ के रूप में मनाया जा रहा है।
उपयुक्त सभी प्रकार के प्रदूषण से बचने के लिए यदि थोड़ा सा भी उचित दिशा में प्रयास किया जाए जो बचा जा सकता है। और साथ ही साथ अपना पर्यावरण भी बचाया जा सकता है।।
निष्कर्ष
पर्यावरण एक सार्वभौमिक समस्या है। अतः इसके लिए विश्व स्तर पर सहयेाग की आवश्यकता है। इस दिशा में अंतर्राष्ट्रीय सहयोग के लिए प्रकृति पर प्रभाव डालने वाले और पर्यावरणीय समस्याओं को गति प्रदान करने वाले सामाजिक आर्थिक और तकनीकी प्रतिामनों पर विचार की जरूरत है। इन आधारों पर विश्व का विकासशील और विकसित देशों में विभाजन हो गया है। यह एक सामाजिक आर्थिक और तकनीकी व्यवस्था के विकास के कारण संभव हुआ हम पिछले 200-300 वर्षों में समाज को पर्यावरण के अन्य तत्वों के साथ संबंधों में बड़े-बड़े परिवर्तन करने का अवसर दिया है। पर्यावरणशस्त्रियों का यह मानना है कि इस स्थिति में सुधार केवल तभी हो सकता है जब मनुष्य एक बार फिर से स्वार्थ को इस प्राकृतिक पर्यावरण का अभिन्न अंग समझना शुरू कर दे। पर्यावरण समस्याओं की जटिलताओं को देखते हुए ऐसा कोई भी एक दृष्टिकोण नहीं है जो सभी जरूरतों को पूरा करता है। पर्यावरण में मानवीय हस्तक्षेप से उत्पन्न समस्याओं और जीवनस्तर में सुधार के लिए किए गए कुछ कार्यों के परिणामस्वरूप अनजाने में उत्पन्न समस्याओं से निपटने के लिए इसके समाधानों का लचीला होना जरूरी है।।
विश्व पर्यावरणीय समस्याओं के बारे में उपरूक्त जटिलताओं का अध्ययन एवं विशलेषण इस अध्याय का मुख्य ध्यय है। विश्व पर्यावरणीय समस्याओं पर एक वैज्ञानिक और सामाजिक आर्थिक दृष्टिकोण से विचारविमर्श करना इसका उद्देश्य है। ताकि इन्हें न केवल प्राकृतिक संसाधनों के संदर्भ में विज्ञान की दृष्टि से बल्कि राजनीतिक सामाजिक मुद्दें की दृष्टि से भी समझा जा सके। इस शोध में अध्यायों को चार भागों में बांटा गया । पहला वैश्विक पर्यावरणीय समस्याएं जिसमें पुरे अतर्राष्ट्रीय स्तर पर जुझ रहे पर्यावरणीय समस्याओं का विस्तार पूर्वक उल्लेख किया गया है। दूसरा, अंतर्राष्ट्रीय कार्यक्रम में पर्यावरणीय समस्याओं का निर्धारण जिसमें कार्यक्रमों का ऐतिहासिक रूपरेखा तैयार किया गया। तीसरा, वैश्विक पर्यावरण मुद्दा और भारत जिसमें भारत से जुड़ी पर्यावरणीय समस्याओं का एवं कार्यक्रमों का उल्लेख किया गया। चैथा, पर्यावरण संरक्षण जिसमें पर्यावरण से जुड़ी समस्या का निदान को प्रस्तुत किया गया। ।
अबु नशर
एम.ए पाॅलिटिकल साइंस
रांची यूनिवर्सिटी, रांची
मो0 न0 9122377359
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इस आर्टिकल के लेखक हैं अबु नशर जो एम.ए पाॅलिटिकल साइंस, रांची यूनिवर्सिटी, रांची के छात्र हैं ।
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