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भूमि प्रदूषण के क्या कारण हैं – SOIL POLLUTION

भूमि प्रदूषण के क्या कारण है?

भूमि प्रदूषण के क्या कारण हैं ? खनिजो का दोहन, औद्योगिक कूड़े करकट का फेंका जाना और शहरी गंदगी के अनुचित प्रबंधन से मिट्टी के दुरूपयोग द्वारा भूमि की उपरी सतह का जो हृास होता है उसे भूमि प्रदुषण कहते है।

भूमि प्रदुषण का प्रमुख कारण शकनाशक और जंतुनाशक में पाया जाने वाला रसायन है कुड़ा कचड़ा वह अपशिष्ट पदार्थ है जिसे सार्वजनकि क्षेत्रों जैसे कि गलियों बगीचों और पिकनिक मनाने केे क्षेत्रों बस ठहराव के स्थानों और दुकानों के आस पास फैंक दिया जाता है। ये भूमि प्रदुषण के कारण है।

भूमि प्रदूषण के क्या कारण है?

ग्लोबल वार्मिंग:-

ज्यादातर ग्लोबल वार्मिंग के लिए मनुष्य की अभिप्रेरक क्रियाएं जिम्मेदार है। हाल के दशकों में सतत् रूप में पृथ्वी के वातावरण और महासागरों के औसत तापमान में निरंतर वृद्धि हुई है। इसे ग्लोबल वार्मिंग कहते हैं तापमान वृद्धि में सबसे बड़ा कारण कार्बन डाईआॅक्साइड जैसी ग्रीन हाउस गैसों का वातावरण में बढ़ता हुआ दबाव है। इसके कारण पृथ्वी के सतह गर्म होने लगती है। जीवाश्म ईंधन के जलाने पर, भूमि को वृक्षहीन करने और कृषि कार्यों से ग्रीन हाउस गैसों की उत्पति होती है। जल वाष्प, कार्बन डाईआॅक्साइड, मिथेन, नाइट्रस आॅक्साइड और ओजोन प्राकृतिक रूप से उत्पन्न ग्रीन हाउस गैसे है। जब सूर्य की रेाशनी धरती पर पहुंचती है तो उसमें से कुछ किरणें अवशोषित हो जाती है और धरती को गर्म कर देती है। चूंकि धरती की सतह सूर्य से ठंडी होती है इसलिए यह सूर्य से भी अधिक तेजी से लंबी तरंगों की कुछ उर्जा को विकसित करती है। इन लंबी तरंगों की कुछ उर्जा अंतरिक्ष में जाने से पहले पर्यावरण की ग्रीन हाउस गैसें अवशोशित कर लेती है। इस लंबी तरंग की विकरित उर्जा के अवशोषण से वायुमंडल गरम हो जाता है। ग्रीन हाउस गैसें भी उपर की ओर अंतरिक्ष में तथा नीचे की ओर भूमी सतह पर लंबी तरंगों वाली विकिरणें उत्सर्जित करती है। वायु मंडल द्वारा नीचे की दिशा में इन लंबी विकिरणों के उत्सर्जन को ग्रीन ‘हाउस प्रभाव’ कहते है।

भूमि प्रदूषण के क्या कारण है?

ग्लोबल वार्मिंग की अन्य वजह सीएफसी है जो रेफ्रीजरेटर्स, अग्निशामक यंत्रों इत्यादि में इस्तेमाल की जाती है। यह धरती के उपर बने एक प्राकृतिक आवरण ओजोन परत को नष्ट करने के काम करती है। ओजोन परत की सूर्य से निकलने वाली घातक पराबैंगनी किरणें सिधे धरती पर पहुंच रही है और इस तरह से पृथ्वी को लगातार गर्म बना रही है। इस बढ़ते तापमान का नतीजा है कि धु्रवों पर सदियों से जमी बर्फ भी पिघलने लगी है। विकसीत हो या अविकसीत ढंग, हर जगह बिजली की जरूरत है। बिजली की उत्पादन के लिए जीवाश्म ईंधन का इस्तेमाल बड़ी मात्रा मे करना पड़ता है। जीवाश्म ईंधन के जलने पर कार्बन डाईआॅक्साइड पैदा होती है जो ग्रीन हाउस गैंसों के प्रभाव को बढ़ा देती है। इसका नतीजा ग्लोबल वार्मिंग के रूप में सामने आता है।

 

जैव विविधता को खतरा:-

जीवों की जैव विविधता उनकी जनसंख्या वितरण, पारिस्थितिकी तंत्र के स्तर और यहां तक की व्यक्तियों की आकृति विज्ञान और कार्य के बारे में प्रभावित होती है। तापमान में वृद्धि के कारण जीव पहले ही आक्षांशें में अपनी सीमाओं का विस्तार करके अनुकूलित कर चुके है। इस व्यवहार के कारण, कई प्रजातियों की आबादी में गिरावट आई है। इसके अलावा कई जानवरों ने अपने शारीरिक कार्यों के समय में परिवर्तन का प्रदर्शन किया है। इसमें सामान्य से पहले पक्षियों और कीटों का प्रवास और संभोग शामिल है, जिसक परिणामस्वरूप युवा प्रजनन और उत्पादन में कुछ विफलता होती है।
पारिस्थितिकी प्रणालियों के बारे में, अध्ययनों से पता चलता है कि जलवायु परिवर्तन ने कई रेगिस्तान पारिस्थितिकी प्रणालियोें के विस्तार को लाया है और इस प्रकार उन कोर्यों और सेवाओं पर प्रभाव पड़ता है जो पारिस्थितिकी तंत्र प्रदान कर सकते है। मुनष्यों के लिए जलवायु परिवर्तन में तेजी से बढ़ती दर मानव सुरक्षा के लिए बड़े खतरे है,क्योंकि प्राकृतिक संसाधन अधिक से अधिक सीमित होते जा रहे है।

भूमि प्रदूषण के क्या कारण है?

वर्तमान में ग्लोबल वार्मिंग और जलवायु परिवर्तन पहले से ही जैव विविधता पर अपरिवर्तनीय प्रभाव डालते है। और ये प्रभाव यदि कम नहीें किए जाते है तो भविष्य में और अधिक महत्वपूर्ण खतरे पैदा हो सकते हैं।

संदर्भ:
1 विस्बाल, तपन, (2016), “अंतर्राष्ट्रीय संबंध” ओरियंट बलैकस्वाने प्राइवेट लिमिटेड च्च् 456
2 वही च्च् 457
3 वही च्च् 458
4 वही च्च् 459
5 वही च्च् 461
6 वही च्च् 462
7 ूपापचमकपं

मानव गति जिसकी पर्यावरण में कभी एक महत्वपूर्ण भूमिका थी, उसने कुछ वर्षो में प्रकृति को प्रभावी रूप से विनाश की सीमा तक पहुंचा दिया है। यह उस सामाजिक आर्थिक और तकनीकी व्यवस्था के विकास के कारण संभव हुआ है, जिस ने पिछले 200-300 वर्षो में समाज को पर्यावरण को अन्य तत्वों के साथ संबंधों में बड़े-बड़े परिवर्तन का भागी नही समझा। इसी अलगाव ने पर्यावरणीय समस्याओं को जन्म दिया है। और गत 100 वर्षो में मनुष्य की जनसंख्या में भारी बढ़ोतरी हुई ही इसके कारण अन्न, जल, बिजली, सड़क, वाहन और अन्य वस्तुओं की मांग में भी वृद्धि हुई ही।

पृथ्वी सौरमंडल का अनोखा ग्रह है क्योंकि केवल यही एक मात्र ऐसी ग्रह है जिस पर जीवन मौजूद है। पृथ्वी पर जीवन का अस्तित्व विकास की कई अवस्थाओं से गुजरा है। मनुष्य इस विकासकारी प्रक्रिया की नवीन अवस्था का प्रतिनिधित्व करता है। विकास के प्रारंभिक दौर से ही मनुष्य पर प्रकृति की कृपा रही है। उदाहरण के लिए एक विशाल बाढ़ अथवा एक ज्वालामुखी में मनुष्य को वंश में करने की शक्ति है। प्रकृति को नियंत्रित करने के प्रयास में मनुष्य ने निंतर धरती के अस्तित्व को खतरे में डाला है। हमारा पर्यावरण गतिशील है और इसमें निरंतर बदलाव और विकास होता रहता है। बीसवीं सदी में एक बात स्पष्ट है कि मनुष्य ने धरती के पारिस्थितिकी प्रभाव डाला है कि हमारे क्रिया कलाप अब पर्यावरण में बदलाव उत्पन्न कर रहे हैं। जो धरती के प्राकृतिक भू विस्तार में परिवर्तन, जलवायु परिवर्तन जैसी पर्यावरणीय समस्याओं के प्रत्यक्ष प्रमाणों के बावजूद हम अभी भी ऐसे क्रिया-कलाप कर रहे है जो इन समस्याओं को बढ़ावा दे रहे है। जैसे-जैसे विश्व की आबादी बढ़ेगी और प्राकृतिक संसाधनों का प्रति उपभोग बढ़ेगी वैसे-वैसे हमारे समझ पर्यावरण की समस्याएं भी बढ़ेगी।

अबु नशर
एम.ए पाॅलिटिकल साइंस
रांची यूनिवर्सिटी, रांची
मो0 न0 9122377359

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इस आर्टिकल के लेखक हैं अबू नशर । एम.ए पाॅलिटिकल साइंस रांची यूनिवर्सिटी, रांची के छात्र हैं ।

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