भारत के सबसे बड़े मुस्लिम समाज सुधारक ।
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भारत के सबसे बड़े मुस्लिम समाज सुधारक ।

भारत के सबसे बड़े मुस्लिम समाज सुधारक ।

Sir Syed Ahmad Khan : भारत के सबसे बड़े मुस्लिम समाज सुधारक । दिल्ली जो एक शहर है, जिसे सदियों से हिन्दुस्तान का दिल होने पर गर्व हासिल है। उसी दिल्ली में एक धार्मिक परिवार में 17 अक्टूबर 1817 को एक बच्चे का जन्म हुआ। जो बच्चा आने वाले समय में मुस्लिम समाज की किस्मत बदलने वाला है।

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सर सैयद अहमद खां की शुरूआती ज़िन्दगी ।

Sir Syed Ahmad Khan दिल्ली के सैय्यद खानदान में पैदा हुए थें। उन्हें बचपन से ही पढ़ने लिखने का बहुत शौक था। 22 वर्ष के उम्र में सर सैय्यद के पिता की मृत्यु हो गई। उन्होंने 1830 में ईस्ट इंडिया कंपनी में क्लार्क के पद में काम करना शुरू किया। इसके बाद उनकी जहां जहां तबादला होता गया सर सैय्यद ने वहां वहां समाज को सुधारने का काम किया।

सर सैय्यद अपने समय के सबसे प्रभावशाली मुस्लिम नेता थें। जो आज से 200 साल पहले आए और 200 साल बाद की सोच रखते थें। जिस तरह उन्होंने ईस्ट इंडिया कंपनी में नौकरी की उसी तरह भारतीयों को भी ईस्ट इंडिया कंपनी के लिए कार्य करने को कहा।

उन्हें लगता था कि अंग्रजो से अच्छे संबंध बनाकर उनके सहयोग से भारत में मुस्लमानों के सामाजिक और आर्थिक विकास में मदद मिल सकती है। सर सैय्यद अहमद हिन्दुस्तानी शिक्षक और नेता थें और समाज सुधारक भी थें जो काम राजा राम मोहन राय ने हिन्दु समाज के लिए किये थें वही काम सर सैय्यद ने मुस्लिम समाज के लिए किया।

सोशल रिफार्म उनका सपना था। जिसके लिए उन्होंने अपनी पूरी जिंदगी लगा दी। सर सैय्यद के मेहनत से ही अलिगढ़ क्रांति की शुरूआत हुई जिसमें शामिल बुद्धिजीवियों और नेताओं ने भारतीय मुस्लमानों को शिक्षित करने का काम किया।

मुगल सल्तनत, अंग्रेजी सरकार और सर सैय्यद ।

मुगल सल्तनत और अंग्रेजी सरकार से सर सैय्यद के बचपन से जान पहचान थी। जिसके वजह से सर सैय्यद का कंपनी के अफसर और दरबार ए मुगल दोनों को ही करीब से देखने का मौका मिला और सर सैय्यद को मुगल सल्तनत के टिमटिमाते चराग के किसी भी वक्त बूझ जाने का एहसास हो गया था।

1857 की क्रांति में तबाह हो चुके हिन्दुस्तान और खासकर मुस्लमानों के हालात देखकर सर सैय्यद का कलेजा तड़प उठा। वो मुस्लमानों की हालात की बेहतरी के तरीके तलाशने लगे कि किस तरह मुस्लमान अपनी खोई हुई रूतबा वापस हासिल करे।

प्रमुख संस्था की स्थापना ।

बहुत कोशिश और चिंतन के बाद सर सैय्यद को एहसास हुआ कि मुस्लमान को अगर तरक्की करना है तो उन्हें मार्डन एजूकेशन के सहारे आगे बढ़ना होगा क्योंकि जिस समाज में एजूकेशन होगी तो उसे तरक्की करने से कोई रोक नहीं सकता। और फिर 1869 में  Sir Syed Ahmad Khan  बनारस से लंदन रवाना हो गये। जहां वो मार्डन एजूकेशन को करीब से देखा और वहां के विद्यार्थी और शिक्षकों से बात की और हर चीजो का जायजा लिया और आक्सर्फोड तथा कैम्ब्रिन के निर्माण का भी जायजा लिया ।

हिन्दुस्तान वापसी पर इसी तरह की संस्थान खोलने की ठान लि हर तरह की परेशानियों के बाद 1875 को मलिका विक्टोरिया के सालगिरह पर एक मदरसे का शुंभ आरंभ हुआ। जिसे बाद में मोहमडन एण्गलों ओरिएन्टल काॅलेज और फिर आगे चलकर अलिगढ़ मुस्लिम यूनिवर्सीटी का नाम दिया गया। इसके अलावा 1858 में मुरादाबाद में आधुनिक मदरसे की स्थापना की 1863 में गाजीपूर में भी एक आधुनिक स्कूल की भी स्थापना की।

साइंटिफिक सोसाइटी और सर सैयद अहमद खान ।

उनके साइंटिफिक सोसाइटी ने कई शैक्षिक पुस्तकों का अनुवाद प्रकाशित किया तथा उर्दु और अंग्रजी में द्वि भाषी पत्रिका निकाली। 1860 के दशक के अंतिम वर्षो में उनकी गतिविधियों का रूख बदलने वाला सिद्ध हुआ। उन्हें 1867 में हिन्दुओं और धार्मिक अस्थाओं के केंद्र गंगा तट पर स्थित बनारस (वर्तमान वराणसी) में स्थानंतरित कर दिया गया। लगभग इसी दौरान मुस्लमानों द्वारा पोषित भाषा उर्दु के स्थान पर हिन्दी को लाने का आंदोलन शुरू हुआ।

इस आंदोलन तथा साइंटिफिक सोसाइटी के प्रकाशनों में उर्दु के स्थान पर हिन्दी लाने के प्रयासो से सर सैय्यद को विश्वास हो गया कि हिन्दुओं और मुस्लमानों के रास्तों को अलग होना ही है। इसलिए उन्होंने इंगलैण्ड की यात्रा करके 1869-70 के दौरान मुस्लिम कैम्ब्रिज जैसी महान शिक्षा संस्थानों की योजना तैयार की तथा भारत लौटने पर इस उद्देश्य के लिए एक समिति बनाई और मुस्लमानों के उत्थान और सुधार के लिए प्रभावशाली पत्रिका ‘ तहदीब- अल- अखलाक’(समाजिक सुधार) का प्रकाशन प्रारंभ किया। उन्होंने 1886 में आल इंडिया मोहमडन एजुकेशनल कांफ्रेंस का गठन किया जिसके वार्षीक सम्मेलन में मुस्लमानों की शिक्षा को बढ़ावा देने के लिए कार्य किये जाते थें।

Sir Syed Ahmad Khan की कृतियों की बात की जाये तो उसमें मुख्यतः

Sir Syed Ahmad Khan की कृतियों की बात की जाये तो उसमें मुख्यतः अतहर असनादीद, असबाबे बगावते हिन्द, आसासस्सनादीद (दिल्ली के ऐतिहासिक इमारतों पर) बाद में ग्रासा दतासी ने इसका फ्रांसीसी भाषा में अनुवाद किया जो 1861 में प्रकाशित हुआ इसके अलावा सर सैय्यद धार्मिक ज्ञान भी बहुत रखते थे।

यू पी के लेफ्निेंट गवर्नर विलियम मेयोर ने जब पैगंबर रसूल मोहम्मद के खिलाफ कुछ गलत लिखा तो सर सैय्यद आज के मुस्लमानों की तरह अपना होश नहीं खोया न ही विलियम मेयोर के पूतले फूंके और न ही मुर्दाबाद के नारे लगाए बल्कि एक किताब ‘खुतबाते अहमदिया’ लिखकर विलियम मेयोर को उसी के भाषा में ऐसा जवाब दिया कि लंदन में भी विलियम मेयोर के रिसर्च पर प्रश्न चिन्ह लग गये।

Sir Syed Ahmad Khan हिन्दुस्तान को एक दुल्हन और हिन्दु मुस्लिम को उस दुल्हन की दो खुबसूरत आंखों की तरह कहते थे.

सर सैय्यद हिन्दुस्तान को एक दुल्हन और हिन्दु मुस्लिम को उस दुल्हन की दो खुबसूरत आंखों की तरह कहते थे उनकी नजर में दोनो मज़हब के लोग एक हैं और मूल्क दोनो मज़हब को एक समान कानून दिया है।

इसलिए दोनो मज़हब को हमेशा एक साथ रहना चाहिए सर सैय्यद ने जब मदरसा कायम की तो उसके पहले शिक्षक अगर मौलवी अबूल हसन थे तो दूसरे मास्टर की जिम्मेदारी लाला बैजनाथ पर थी। वो मुस्लमानों को अक्सर कहा करते थें कि दुनिया को इस्लाम के बजाय अपना चेहरा दिखाव, यह दिखाव कि तुम कितने संस्कारी, पढ़े लिखे और सहिष्णु हो।

मुस्लिम समाज को अंधेरे से निकाल कर रौशनी देने वाला और समाज में मार्डन एजूकेशन पैदा करने वाला ये फरिश्ता आखिरकार 27 मार्च 1898 को इस दुनिया से इस बात के साथ विदा ले लिया कि मुस्लामानों लाख मुश्किलात के बावजूद जज़बात में मत बहना। सरकार से टकराने के बजाय सोच बुझ से काम लेना वतन के भाइयों को साथ लेकर चलना और शिक्षा को अपना हथियार बनाना।

सूरज हूं जिन्दगी की रमक छोड़ जाऊंगा
मैं डूब भी गया तो शफक छोड़ जाऊंगा।।

लेखक : अबु नशर
एम.ए पाॅलिटिकल साइंस
रांची यूनिवर्सिटी, रांची
मो0 न0 9122377359

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