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वैश्विक पर्यावरणीय मुद्दें चुनौतियां एवं समाधान – Global Environmental Issues Challenges and Solutions
1 .भूमिका
वैश्विक पर्यावरणीय मुद्दें चुनौतियां एवं समाधान : मानव गति जिसकी पर्यावरण में कभी एक महत्वपूर्ण भूमिका थी, उसने कुछ वर्षो में प्रकृति को प्रभावी रूप से विनाश की सीमा तक पहुंचा दिया है। यह उस सामाजिक आर्थिक और तकनीकी व्यवस्था के विकास के कारण संभव हुआ है, जिस ने पिछले 200-300 वर्षो में समाज को पर्यावरण को अन्य तत्वों के साथ संबंधों में बड़े-बड़े परिवर्तन का भागी नही समझा। इसी अलगाव ने पर्यावरणीय समस्याओं को जन्म दिया है। और गत 100 वर्षो में मनुष्य की जनसंख्या में भारी बढ़ोतरी हुई ही इसके कारण अन्न, जल, बिजली, सड़क, वाहन और अन्य वस्तुओं की मांग में भी वृद्धि हुई ही।
प्रिणाम स्वरूप हमारे प्राकृतिक संसाधनों पर काफी दबाव पड़ रहा है। हमारी आज भी आवश्यकता है कि विकास की प्रक्रिया को बिना रोके अपने महत्व पूर्ण प्राकृतिक संसाधनों को खराब होने और इनको अवक्षय को रोके और इसे प्रदूषित होन से बचाए पर्यावरण शस्त्रियों का यह मानना है कि इस स्थिति में सुधार केवल तभी हो सकता है जब मनुष्य एक बार फिर से स्वयं इस प्राकृतिक पर्यावरण का अभिन्न अंग समझना शुरू कर दे। पर्यावरण एक सार्वभौमिक समस्या है। अतः इसके लिए विश्व स्तर पर सहयोग की आवश्यकता है। इस दिशा में अंतर्राष्ट्रीय सहयोग के लिए प्रकृति पर प्रभाव ालने वाले और पर्यावरण समस्याओं को गति प्रदान करने वाले सामाजिक आर्थिक और तकनीकी प्रतिमानों पर विचार की जरूरत है।
2. लघु शोध की समस्या
प्रस्तूत लघु शोध कि समस्याा वैश्विक पर्यावरणीय मुद्दे, ‘चुनौतियों एवं समाधान है। इसमें वैश्विक पर्यावरण की वर्तमान समय में उत्पन्न चुनौतिया एवं समाधान है। इसमें वैश्विक पर्यावरण से जुड़े अध्ययन एवं चुनौतियों का अध्ययन का प्रयास किया गया है।
वैश्विक पर्यावरणीय मुद्दें चुनौतियां एवं समाधान
3. अध्ययन कार्य के उद्देश्य ।
वैश्विक पर्यावरण एक बड़ा मुद्दा है, और इसे से जुड़े मुद्दे एवं चुनौतियां गंभीर है। और इसके सामाधान से जुड़े कार्यो में कोशिश करना वैश्विक पर्यावरण का उद्देश्य ही पृथ्वी पर अच्छे पर्यावरण और मानव जीवन को बेहतर बनाने का तरीका ढुंढना आवश्यक है, इसी प्रेरणा से हम प्राकृतिक से जुड़ी समस्याओं की निदान की ओर बढ़ते है।
4. साहित्य समीक्षा
1. अंतर्राष्ट्रीय संबंध, तपन बिस्वाल
2. ूपाप चपकपं
3. ूूूण्इतंपदसलण्पद
4. ूूूण्पदकपं ूंजंद चवतजंसण्बवउ
5. अनुसंधान विज्ञान शोध पत्रिका, 2016 ।तअपदक ेपदह
5 उपकल्पना
वैश्विक पर्यावरण वर्तमान समय में गंभीर चुनौति है जिसका समाधान विश्व के सभी देशों को एकजुट होकर ढुंढने की आवश्यकता है।
6 शोध प्रारूप एवं शोध पद्धति
अध्ययन को सार्थक बनाने के लिए ऐतिहासिक एवं विश्लेषणात्मक पद्धति का प्रयोग किया गया है।
7 तथ्य संकलन के स्त्रोत एवं अध्ययन विधी
द्वितीयक स्त्रोतों के माध्यम से तथ्यों को प्राप्त किया गया है, यथा पुस्तकें, पत्र-पत्रिकाएं, इंटरनेट, पुस्तकालयें विधि का उपयेग किया गया है।
वैश्विक पर्यावरणीय मुद्दें चुनौतियां एवं समाधान
8. अध्ययन का महत्व
पर्यावरण के बारे में पढ़ने और पढ़ाने का अर्थ है हमारी जिंदगी के हर पहलू के बारे के बारे में पढ़ना और पढ़ाना, हमें यह संबंध स्थापित करना होगा। पर्यावरण संबंधी अध्ययन दुनिया भर के विषयों का हिस्सा है। रसायन शास्त्र से लेकर भूगोल और इतिहास तक यह हमारी जिंदगी से जुड़ा हुआ है। पर्यावरण शिक्षा का सबसे अच्छा तरीका यह है कि हम अपने आसपास की घटनाओं से शिक्षा लेते रहे। पर्यावरण संबंधी अध्ययन कभी किताबी अध्ययन बनकर नहीं रह सकता है, बल्कि इसे समझने के लिए वास्तविक जिवन से जुड़ी समझने का अध्ययन आवश्यक है। पर्यावरण प्रबंधन की समस्या का कोई एक हल नहीं है। हमें पूरी विनम्रता से यह स्वीकार करना होगा कि हम पर्यावरण को अच्छी तरह नहीं समझते है।
9. अध्यापीकरण
प्रस्तुत लघु शोध प्रबंध को चार अध्यायों में बांटा गया है-1. वैश्विक पर्यावरणीय समस्याए
2. अंतर्राष्ट्रीय कार्यक्रम में पर्यावरणीय समस्याओं का निर्धारण
3. वैश्विक पर्यावरण और भारत
4. एक कदम संरक्षण की ओर
10 संभावित अध्ययन- जलवायु परिवर्तन की भूमिका का अध्ययन किया जा सकता है।
Global Environmental Issues Challenges and Solutions
वैश्विक पर्यावरणीय समस्याए:-
गत सौ वर्ष में मनुष्य की जनसंख्या में भारी बढ़ोतरी हुई है। इसके कारण अन्न, जल, घर, बिजली, सड़क वाहन और अन्य वस्तुओं की मांग में भी वृद्धि हुई है। परिणामस्वरूप हमारे प्राकृतिक संसाधनों पर काफी दबाव पड़ रहा है और वायु जल तथा भूमि प्रदूषण बढ़ता जा रहा है। हमारी आज भी आवश्यकता है कि विकास की प्रक्रिया को बिना रोके अपने महत्वपूर्ण प्राकृतिक संसाधनों को खराब होने और इनको अवक्षय को रोके और इसे प्रदूषित होन से बचाएं। वैश्विक पर्यावरणीय मुद्दें चुनौतियां एवं समाधान
पृथ्वी सौरमंडल का अनोखा ग्रह है क्योंकि केवल यही एक मात्र ऐसी ग्रह है जिस पर जीवन मौजूद है। पृथ्वी पर जीवन का अस्तित्व विकास की कई अवस्थाओं से गुजरा है। मनुष्य इस विकासकारी प्रक्रिया की नवीन अवस्था का प्रतिनिधित्व करता है। विकास के प्रारंभिक दौर से ही मनुष्य पर प्रकृति की कृपा रही है। उदाहरण के लिए एक विशाल बाढ़ अथवा एक ज्वालामुखी में मनुष्य को वंश में करने की शक्ति है। प्रकृति को नियंत्रित करने के प्रयास में मनुष्य ने निंतर धरती के अस्तित्व को खतरे में डाला है। हमारा पर्यावरण गतिशील है और इसमें निरंतर बदलाव और विकास होता रहता है। बीसवीं सदी में एक बात स्पष्ट है कि मनुष्य ने धरती के पारिस्थितिकी प्रभाव डाला है कि हमारे क्रिया कलाप अब पर्यावरण में बदलाव उत्पन्न कर रहे हैं। जो धरती के प्राकृतिक भू विस्तार में परिवर्तन, जलवायु परिवर्तन जैसी पर्यावरणीय समस्याओं के प्रत्यक्ष प्रमाणों के बावजूद हम अभी भी ऐसे क्रिया-कलाप कर रहे है जो इन समस्याओं को बढ़ावा दे रहे है। जैसे-जैसे विश्व की आबादी बढ़ेगी और प्राकृतिक संसाधनों का प्रति उपभोग बढ़ेगी वैसे-वैसे हमारे समझ पर्यावरण की समस्याएं भी बढ़ेगी।
वैश्विक पर्यावरणीय समस्याएं
1 जीवाश्म ईधन का हृास
2 प्रदूषण
3 ग्लोबल वार्निंग
4 जलवायु परिवर्तन
5 जैव विविधता
6 वनो की कटाई
1 – जीवाश्म ईधन का हृास:-
मनुष्य द्वारा जीवाश्र्म इंधन के दहन से बड़ी मात्रा में कार्बन डाई आक्साइड का उत्सर्जन होता है। जीवाश्र्म इंधन खास कर कोयले, ईधन तेल अथवा प्राकृतिक गैस का निर्माण मृत पौधों और पशुओं के अवशेषों से होता है। जीवाश्म ईधन जैविक पदार्थों के दबे हुए जो करोड़ों वर्षो की प्रक्रिया के दौरान पृथ्वी की सतह में मृत पौधों और प्राणियों के सड़े गले अवशेषों के ताप और अबाव के संपर्क में आने से कच्चे तेल, कोयले, प्राकृतिक गैस, अथवा भारी तेल में परिवर्तन हो गए है। इस सिद्धांत को बायोजैनिक सिद्धांत कहा जाता है और इसका प्रतिपादन सर्वप्रथम 1757 में मिजाइल लोमोनोसाव ने किया था। जीवाश्म ईधन को कभी खनिज ईधन भी कहा जाता है। इस ईधन की उपयोगिता ने बड़े पैमाने पर औाद्योगिक निकास में सहायता की है। एवं निजी वाहनों और अन्य यातायात के साधन में इसी ईं़धन का उपयोग किया जाता है। लेकिन यह सिमित मात्रा में ही पृथ्वी में उपस्थित है। साथ ही इसके उपयोग से वायु प्रदुषण के साथ ही पृथ्वी का तापमान भी बढ़ने लगता है। इस कारण कई स्थानों में बर्फ पिघलते है जिससे पार्यावरण का संतुलन बिगड़ता है और कुछ स्थानों पर सुखा एवं कुछ स्थानों पर अधिक बारिश होती है।
मनुष्य द्वारा जीवाश्म ईधन के दहन से बड़ी मात्रा में कार्बन डाईआक्साइड का उत्सर्जन होता है। यह एक तरह की ग्रीन हाउस गैस है जो रेडियोधर्मिता को बढ़ावा देकर ग्लोबल वार्निंग में योग दे रही है। कार्बन डाई आक्साईड या नामक इस ग्रीन हाउस गैस का पर्यावरणीय दबाव बढ़ रहा है जिसके कारण सूर्य का ताप बाहर नहीं निकल पाएगा अथवा यहीं आकर रूक जाएगा और इसके प्रतिक्रियास्वरूप धरती की सतह का औसत तापमान बढ़ने लगेगा जिसके प्रति चिंता व्यक्त की जा रहीे है। जीवाश्म ईधन के जलने से सतफ्यूरिक कार्बनिक औार नाइट्रिक अम्लों का निर्माण होता है जो पृथ्वी पर अम्लीय वर्षा के रूप में गिरते है। यह अम्लीय वर्षा प्राकृतिक तथा मानव के द्वारा बनायी गयी चिजो दोनो पर प्रभाव डालती है। जीवाश्म ईधन में रेडियों धर्मी पदार्थ भी होते है इसमें युरेनियम और थोरियम होता है जो पर्यावरण में फैल जाता है। संगमरमर से बनी इमारते और मूर्तियां इस अम्लीय वर्षा से ज्यादा प्रभावीत होते है और संवेदनशील हो जाते है क्योंकि इन अम्लीय वर्षा में कैल्शियम कार्बोनेट घुला होता ही कोयले में जलने से भी बड़ी मात्रा में हवा और भूमी पर राज का उत्पादन होता हैं कोयले को लाने ले जाने के लिए डीजल संचालित ईंधन की आवश्यकता होती है और 8 टैंकर जहाज विशेष रूप से कच्चे तेल का परिवहन करते हैं। इन सबके लिए जीवाश्म ईंधन के दहन की जरूरत होती है।
2 – प्रदूषण:-
प्रदुषण पर्यावरण में दूषक पदार्थों के प्रवेश के कारण प्राकृतिक संतुलन में पैदा होने वाले दोष को कहते है। प्रदुषण पर्यावरण को और जीव जन्तुओं को नुकसान पहुंचाते है। प्रदुषण का अर्थ है- हवा, पानी, मिट्टी आदि का अवांछित द्रव्यों से दूषित होना जिसमे ंसजीवों पर प्रतयक्ष रूप से विपरीत प्रभाव पड़ता है तथा पारिस्थितिक तंत्र को नुकसान पहुचाता है प्रकृति द्वारा निर्मित वस्तुओं के अवशेष को जब मानव निर्मित वस्तुओं के अवशेष के साथ मिला दिया जाता है तब दूषक पदार्थो का निर्माण होता है और दूषक पदार्थो का पुर्नचक्रण नहीं किया जा सकता है।
पृथ्वी का वातावरण स्तरीय है। पृथ्वी के नजदीक 50 किमी. उंचाई पर स्ट्रेटोस्फेयद है जिसमें ओजोन स्तर होता है। यह स्तर सूर्यप्रकाश की पराबैंगनी किरणों को शोषित कर उसे पृथ्वी तक पहुचाने से रोकता है। आज ओजोन स्तर का तेजी से विघटन हो रहो है वातावरण मे स्थित क्लोरोफ्लोरों कार्बन गैस के कारण ओजोन स्तर का विघटन हो रहा है। सर्वप्रथम 1980 के वर्ष में नोट किया गया कि ओजोन स्तर का विघटन सम्पूर्ण पृथ्वी के चारो ओर हो रहा है। दक्षिण धु्रव विस्तारों में ओजोन सतर का विघटन 40 प्रतिशत-50 प्रतिशत हुआ है। इस विशाल घटना को ओजोन छिद्र (ओजोन होल) कहते है।
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अबु नशर
एम.ए पाॅलिटिकल साइंस
रांची यूनिवर्सिटी, रांची
मो0 न0 9122377359
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